Deuteronomy - व्यवस्थाविवरण
01. हे इस्राएल, सुन, आज तू यरदन पार इसलिये जानेवाला है, कि ऐसी जातियों को जो तुझ से बड़ी और सामर्थी हैं, और ऐसे बड़े नगरों को जिनकी श्हरपनाह आकाश से बातें करती हैं, अपने अधिकार में ले ले।
02. उन में बड़े बड़े और लम्बे लम्बे लोग, अर्थात अनाकवंशी रहते हैं, जिनका हाल तू जानता है, और उनके विषय में तू ने यह सुना है, कि अनाकवशियों के साम्हने कौन ठहर सकता है?
03. इसलिये आज तू यह जान ले, कि जो तेरे आगे भस्म करने वाली आग की नाईं पार जाने वाला है वह तेरा परमेश्वर यहोवा है; और वह उनका सत्यानाश करेगा, और वह उन को तेरे साम्हने दबा देगा; और तू यहोवा के वचन के अनुसार उन को उस देश से निकाल कर शीघ्र ही नष्ट कर डालेगा।
04. जब तेरा परमेश्वर यहोवा उन्हें तेरे साम्हने से निकाल चुके तब यह न सोचना, कि यहोवा तेरे धर्म के कारण तुझे इस देश का अधिकारी होने को ले आया है, किन्तु उन जातियों की दुष्टता ही के कारण यहोवा उन को तेरे साम्हने से निकालता है।
05. तू जो उनके देश का अधिकारी होने के लिये जा रहा है, इसका कारण तेरा धर्म वा मन की सीधाई नहीं है; तेरा परमेश्वर यहोवा जो उन जातियों को तेरे साम्हने से निकालता है, उसका कारण उनकी दुष्टता है, और यह भी कि जो वचन उसने इब्राहीम, इसहाक, और याकूब, तेरे पूर्वजों को शपथ खाकर दिया था, उसको वह पूरा करना चाहता है।
06. इसलिये यह जान ले कि तेरा परमेश्वर यहोवा, जो तुझे वह अच्छा देश देता है कि तू उसका अधिकारी हो, उसे वह तेरे धर्म के कारण नहीं दे रहा है; क्योंकि तू तो एक हठीली जाति है।
07. इस बात का स्मरण रख और कभी भी न भूलना, कि जंगल में तू ने किस किस रीति से अपने परमेश्वर यहोवा को क्रोधित किया; और जिस देश से तू मिस्र देश से निकला है जब तक तुम इस स्थान पर न पहुँचे तब तक तुम यहोवा से बलवा ही बलवा करते आए हो।
08. फिर होरेब के पास भी तुम ने यहोवा को क्रोधित किया, और वह क्रोधित हो कर तुम्हें नष्ट करना चाहता था।
09. जब मैं उस वाचा के पत्थर की पटियाओं को जो यहोवा ने तुम से बान्धी थी लेने के लिये पर्वत के ऊपर चढ़ गया, तब चालीस दिन और चालीस रात पर्वत ही के ऊपर रहा; और मैं ने न तो रोटी खाई न पानी पिया।
10. और यहोवा ने मुझे अपने ही हाथ की लिखी हुई पत्थर की दोनों पटियाओं को सौंप दिया, और वे ही वचन जिन्हें यहोवा ने पर्वत के ऊपर आग के मध्य में से सभा के दिन तुम से कहे थे वे सब उन पर लिखे हुए थे।
11. और चालीस दिन और चालीस रात के बीत जाने पर यहोवा ने पत्थर की वे दो वाचा की पटियाएं मुझे दे दीं।
12. और यहोवा ने मुझ से कहा, उठ, यहां से झटपट नीचे जा; क्योकिं तेरी प्रजा के लोग जिन को तू मिस्र से निकाल कर ले आया है वे बिगड़ गए हैं; जिस मार्ग पर चलने की आज्ञा मैं ने उन्हें दी थी उसको उन्होंने झटपट छोड़ दिया है; अर्थात उन्होंने तुरन्त अपने लिये एक मूर्ति ढालकर बना ली है।
13. फिर यहोवा ने मुझ से यह भी कहा, कि मैं ने उन लोगो को देख लिया, वे हठीली जाति के लोग हैं;
14. इसलिये अब मुझे तू मत रोक, ताकि मैं उन्हें नष्ट कर डालूं, और धरती के ऊपर से उनका नाम वा चिन्ह तक मिटा डालूं, और मैं उन से बढ़कर एक बड़ी और सामर्थी जाति तुझी से उत्पन्न करूंगा।
15. तब मैं उलटे पैर पर्वत से नीचे उतर चला, और पर्वत अग्नि से दहक रहा था; और मेरे दोनों हाथों में वाचा की दोनों पटियाएं थीं।
16. और मैं ने देखा कि तुम ने अपने परमेश्वर यहोवा के विरुद्ध महापाप किया; और अपने लिये एक बछड़ा ढालकर बना लिया है, और तुरन्त उस मार्ग से जिस पर चलने की आज्ञा यहोवा ने तुम को दी थी उसको तुम ने तज दिया।
17. तब मैं ने उन दोनों पटियाओं को अपने दोनों हाथों से ले कर फेंक दिया, और तुम्हारी आंखों के साम्हने उन को तोड़ डाला।
18. तब तुम्हारे उस महापाप के कारण जिसे करके तुम ने यहोवा की दृष्टि में बुराई की, और उसे रीस दिलाई थी, मैं यहोवा के साम्हने मुंह के बल गिर पड़ा, और पहिले की नाईं, अर्थात चालीस दिन और चालीस रात तक, न तो रोटी खाई और न पानी पिया।
19. मैं तो यहोवा के उस कोप और जल-जलाहट से डर रहा था, क्योंकि वह तुम से अप्रसन्न हो कर तुम्हें सत्यानाश करने को था। परन्तु यहोवा ने उस बार भी मेरी सुन ली।
20. और यहोवा हारून से इतना क्रोधित हुआ कि उसे भी सत्यानाश करना चाहा; परन्तु उसी समय मैं ने हारून के लिये भी प्रार्थना की।
21. और मैं ने वह बछड़ा जिसे बनाकर तुम पापी हो गए थे ले कर, आग में डालकर फूंक दिया; और फिर उसे पीस पीसकर ऐसा चूर चूरकर डाला कि वह धूल की नाईं जीर्ण हो गया; और उसकी उस राख को उस नदी में फेंक दिया जो पर्वत से निकलकर नीचे बहती थी।
22. फिर तबेरा, और मस्सा, और किब्रोतहत्तावा में भी तुम ने यहोवा को रीस दिलाई थी।
23. फिर जब यहोवा ने तुम को कादेशबर्ने से यह कहकर भेजा, कि जा कर उस देश के जिसे मैं ने तुम्हें दिया है अधिकारी हो जाओ, तब भी तुम ने अपने परमेश्वर यहोवा की आज्ञा के विरुद्ध बलवा किया, और न तो उसका विश्वास किया, और न उसकी बात मानी।
24. जिस दिन से मैं तुम्हें जानता हूं उस दिन से तुम यहोवा से बलवा ही करते आए हो।
25. मैं यहोवा के साम्हने चालीस दिन और चालीस रात मुंह के बल पड़ा रहा, क्योंकि यहोवा ने कह दिया था, कि वह तुम को सत्यानाश करेगा।
26. और मैं ने यहोवा से यह प्रार्थना की, कि हे प्रभु यहोवा, अपना प्रजारूपी निज भाग, जिन को तू ने अपने महान् प्रताप से छुड़ा लिया है, और जिन को तू ने अपने बलवन्त हाथ से मिस्र से निकाल लिया है, उन्हें नष्ट न कर।
27. अपने दास इब्राहीम, इसहाक, और याकूब को स्मरण कर; और इन लोगों की कठोरता, और दुष्टता, और पाप पर दृष्टि न कर,
28. जिस से ऐसा न हो कि जिस देश से तू हम को निकाल कर ले आया है, वहां से लोग कहने लगें, कि यहोवा उन्हें उस देश में जिसके देश का वचन उन को दिया था नहीं पहुंचा सका, और उन से बैर भी रखता था, इसी कारण उसने उन्हें जंगल में निकाल कर मार डाला है।
29. ये लोग तेरी प्रजा और निज भाग हैं, जिन को तू ने अपने बड़े सामर्थ्य और बलवन्त भुजा के द्वारा निकाल ले आया है॥