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Job - अय्यूब

अध्याय : 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42

01. मेरा प्राण जीवित रहने से उकताता है; मैं स्वतंत्रता पूर्वक कुड़कुड़ाऊंगा; और मैं अपने मन की कड़वाहट के मारे बातें करूंगा।
02. मैं ईश्वर से कहूंगा, मुझे दोषी न ठहरा; मुझे बता दे, कि तू किस कारण मुझ से मुक़द्दमा लड़ता है?
03. क्या तुझे अन्धेर करना, और दुष्टों की युक्ति को सफल कर के अपने हाथों के बनाए हुए को निकम्मा जानना भला लगता है?
04. क्या तेरी देहधारियों की सी आंखें है? और क्या तेरा देखना मनुष्य का सा है?
05. क्या तेरे दिन मनुष्य के दिन के समान हैं, वा तेरे वर्ष पुरुष के समयों के तुल्य हैं,
06. कि तू मेरा अधर्म ढूंढ़ता, और मेरा पाप पूछता है?
07. तुझे तो मालूम ही है, कि मैं दुष्ट नहीं हूँ, और तेरे हाथ से कोई छुड़ाने वाला नहीं!
08. तू ने अपने हाथों से मुझे ठीक रचा है और जोड़कर बनाया है; तौभी मुझे नाश किए डालता है।
09. स्मरण कर, कि तू ने मुझ को गून्धी हुई मिट्टी की नाईं बनाया, क्या तू मुझे फिर धूल में मिलाएगा?
10. क्या तू ने मुझे दूध की नाईं उंडेलकर, और दही के समान जमाकर नहीं बनाया?
11. फिर तू ने मुझ पर चमड़ा और मांस चढ़ाया और हड्डियां और नसें गूंथकर मुझे बनाया है।
12. तू ने मुझे जीवन दिया, और मुझ पर करुणा की है; और तेरी चौकसी से मेरे प्राण की रक्षा हई है।
13. तौभी तू ने ऐसी बातों को अपने मन में छिपा रखा; मैं तो जान गया, कि तू ने ऐसा ही करने को ठाना था।
14. जो मैं पाप करूं, तो तू उसका लेखा लेगा; और अधर्म करने पर मुझे निर्दोष न ठहराएगा।
15. जो मैं दुष्टता करूं तो मुझ पर हाय! और जो मैं धमीं बनूं तौभी मैं सिर न उठाऊंगा, क्योंकि मैं अपमान से भरा हुआ हूं और अपने दु:ख पर ध्यान रखता हूँ।
16. और चाहे सिर उठाऊं तौभी तू सिंह की नाईं मेरा अहेर करता है, और फिर मेरे विरुद्ध आश्चर्यकर्म करता है।
17. तू मेरे साम्हने अपने नये नये साक्षी ले आता है, और मुझ पर अपना क्रोध बढ़ाता है; और मुझ पर सेना पर सेना चढ़ाई करती है।
18. तू ने मुझे गर्भ से क्यों निकाला? नहीं तो मैं वहीं प्राण छोड़ता, और कोई मुझे देखने भी न पाता।
19. मेरा होना न होने के समान होता, और पेट ही से क़ब्र को पहुंचाया जाता।
20. क्या मेरे दिन थोड़े नहीं? मुझे छोड़ दे, और मेरी ओर से मुंह फेर ले, कि मेरा मन थोड़ा शान्त हो जाए
21. इस से पहिले कि मैं वहां जाऊं, जहां से फिर न लौटूंगा, अर्थात अन्धियारे और घोर अन्धकार के देश में, जहां अन्धकार ही अन्धकार है;
22. और मृत्यु के अन्धकार का देश जिस में सब कुछ गड़बड़ है; और जहां प्रकाश भी ऐसा है जैसा अन्धकार।

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