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Jeremiah - यिर्मयाह

अध्याय : 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52

01. जब यिर्मयाह यह भविष्यद्वाणी कर रहा था, तब इम्मेर का पुत्र पशहूर ने जो याजक और यहोवा के भवन का प्रधान रखवाला था, वह सब सुना।
02. सो पशहूर ने यिर्मयाह भविष्यद्वक्ता को मारा और उसे उस काठ में डाल दिया जो यहोवा के भवन के ऊपर बिन्यामीन के फाटक के पास है।
03. बिहान को जब पशहूर ने यिर्मयाह को काठ में से निकलवाया, तब यिर्मयाह ने उस से कहा, यहोवा ने तेरा नाम पशहूर नहीं मागोर्मिस्साबीब रखा है।
04. क्योंकि यहोवा ने यों कहा है, देख, मैं तुझे तेरे लिये और तेरे सब मित्रों के लिये भी भय का कारण ठहराऊंगा। वे अपने शत्रुओं की तलवार से तेरे देखते ही वध किए जाएंगे। और मैं सब यहूदियों को बाबुल के राजा के वश में कर दूंगा; वह उन को बंधुआ कर के बाबुल में ले जाएगा, और तलवार से मार डालेगा।
05. फिर मैं इस नगर के सारे धन को और इस में की कमाई और सब अनमोल वस्तुओं को और यहूदा के राजाओं का जितना रखा हुआ धन है, उस सब को उनके शत्रुओं के वश में कर दूंगा; और वे उसको लूट कर अपना कर लेंगे और बाबुल में ले जाएंगे।
06. और, हे पशहूर, तू उन सब समेत जो तेरे घर में रहते हैं बंधुआई में चला जाएगा; अपने उन मित्रों समेत जिन से तू ने झूठी भविष्यद्वाणी की, तू बाबुल में जाएगा और वहीं मरेगा, और वहीं तुझे और उन्हें भी मिट्टी दी जाएगी।
07. हे यहोवा, तू ने मुझे धोखा दिया, और मैं ने धोखा खाया; तू मुझ से बलवन्त है, इस कारण तू मुझ पर प्रबल हो गया। दिन भर मेरी हंसी होती है; सब कोई मुझ से ठट्ठा करते हैं।
08. क्योंकि जब मैं बातें करता हूँ, तब मैं जोर से पुकार पुकारकर ललकारता हूँ कि उपद्रव और उत्पात हुआ, हां उत्पात! क्योंकि यहोवा का वचन दिन भर मेरे लिये निन्दा और ठट्ठा का कारण होता रहता है।
09. यदि मैं कहूं, मैं उसकी चर्चा न करूंगा न उसके नाम से बोलूंगा, तो मेरे हृदय की ऐसी दशा होगी मानो मेरी हड्डियों में धधकती हुई आग हो, और मैं अपने को रोकते रोकते थक गया पर मुझ से रहा नहीं जाता।
10. मैं ने बहुतों के मुंह से अपना अपवाद सुना है। चारों ओर भय ही भय है! मेरी जान पहचान के सब जो मेरे ठोकर खाने की बाट जोहते हैं, वे कहते हैं, उसके दोष बताओ, तब हम उनकी चर्चा फैला देंगे। कदाचित वह धोखा खाए, तो हम उस पर प्रबल हो कर, उस से बदला लेंगे।
11. परन्तु यहोवा मेरे साथ है, वह भयंकर वीर के समान है; इस कारण मेरे सताने वाले प्रबल न होंगे, वे ठोकर खाकर गिरेंगे। वे बुद्धि से काम नहीं करते, इसलिये उन्हें बहुत लज्जित होना पड़ेगा। उनका अपमान सदैव बना रहेगा और कभी भूला न जाएगा।
12. हे सेनाओं के यहोवा, हे धर्मियों के परखने वाले और हृदय और मन के ज्ञाता, जो बदला तू उन से लेगा, उसे मैं देखूं, क्योंकि मैं ने अपना मुक़द्दमा तेरे ऊपर छोड़ दिया है।
13. यहोवा के लिये गाओ; यहोवा की स्तुति करो! क्योंकि वह दरिद्र जन के प्राण को कुकमिर्यों के हाथ से बचाता है।
14. श्रापित हो वह दिन जिस में मैं उत्पन्न हुआ! जिस दिन मेरी माता ने मुझ को जन्म दिया वह धन्य न हो!
15. श्रापित हो वह जन जिसने मेरे पिता को यह समाचार देकर उसको बहुत आनन्दित किया कि तेरे लड़का उत्पन्न हुआ है।
16. उस जन की दशा उन नगरों की सी हो जिन्हें यहोवा ने बिन दया ढा दिया; उसे सवेरे तो चिल्लाहट और दोपहर को युद्ध की ललकार सुनाई दिया करे,
17. क्योंकि उसने मुझे गर्भ ही में न मार डाला कि मेरी माता का गर्भाशय ही मेरी क़ब्र होती, और मैं उसी में सदा पड़ा रहता।
18. मैं क्यों उत्पात और शोक भोगने के लिये जन्मा और कि अपने जीवन में परिश्रम और दु:ख देखूं, और अपने दिन नामधराई में व्यतीत करूं?

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