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Mark - मरकुस

अध्याय : 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16

1 और वह आराधनालय में फिर गया; और वहां एक मनुष्य था, जिस का हाथ सूख गया था।
2 और वे उस पर दोष लगाने के लिये उस की घात में लगे हुए थे, कि देखें, वह सब्त के दिन में उसे चंगा करता है कि नहीं।
3 उस ने सूखे हाथ वाले मनुष्य से कहा; बीच में खड़ा हो।
4 और उन से कहा; क्या सब्त के दिन भला करना उचित है या बुरा करना, प्राण को बचाना या मारना? पर वे चुप रहे।
5 और उस ने उन के मन की कठोरता से उदास होकर, उन को क्रोध से चारों ओर देखा, और उस मनुष्य से कहा, अपना हाथ बढ़ा उस ने बढ़ाया, और उसका हाथ अच्छा हो गया।
6 तब फरीसी बाहर जाकर तुरन्त हेरोदियों के साथ उसके विरोध में सम्मति करने लगे, कि उसे किस प्रकार नाश करें॥
7 और यीशु अपने चेलों के साथ झील की ओर चला गया: और गलील से एक बड़ी भीड़ उसके पीछे हो ली।
8 और यहूदिया, और यरूशलेम और इदूमिया से, और यरदन के पार, और सूर और सैदा के आसपास से एक बड़ी भीड़ यह सुनकर, कि वह कैसे अचम्भे के काम करता है, उसके पास आई।
9 और उस ने अपने चेलों से कहा, भीड़ के कारण एक छोटी नाव मेरे लिये तैयार रहे ताकि वे मुझे दबा न सकें।
10 क्योंकि उस ने बहुतों को चंगा किया था; इसलिये जितने लोग रोग से ग्रसित थे, उसे छूने के लिये उस पर गिरे पड़ते थे।
11 और अशुद्ध आत्माएं भी, जब उसे देखती थीं, तो उसके आगे गिर पड़ती थीं, और चिल्लाकर कहती थीं कि तू परमेश्वर का पुत्र है।
12 और उस ने उन्हें बहुत चिताया, कि मुझे प्रगट न करना॥
13 फिर वह पहाड़ पर चढ़ गया, और जिन्हें वह चाहता था उन्हें अपने पास बुलाया; और वे उसके पास चले आए।
14 तब उस ने बारह पुरूषों को नियुक्त किया, कि वे उसके साथ साथ रहें, और वह उन्हें भेजे, कि प्रचार करें।
15 और दुष्टात्माओं के निकालने का अधिकार रखें।
16 और वे ये हैं: शमौन जिस का नाम उस ने पतरस रखा।
17 और जब्दी का पुत्र याकूब, और याकूब का भाई यूहन्ना, जिनका नाम उस ने बूअनरिगस, अर्थात गर्जन के पुत्र रखा।
18 और अन्द्रियास, और फिलेप्पुस, और बरतुल्मै, और मत्ती, और थोमा, और हलफई का पुत्र याकूब; और तद्दी, और शमौन कनानी।
19 और यहूदा इस्करियोती, जिस ने उसे पकड़वा भी दिया॥
20 और वह घर में आया: और ऐसी भीड़ इकट्ठी हो गई, कि वे रोटी भी न खा सके।
21 जब उसके कुटुम्बियों ने यह सुना, तो उसे पकड़ने के लिये निकले; क्योंकि कहते थे, कि उसका चित्त ठिकाने नहीं है।
22 और शास्त्री जो यरूशलेम से आए थे, यह कहते थे, कि उस में शैतान है, और यह भी, कि वह दुष्टात्माओं के सरदार की सहायता से दुष्टात्माओं को निकालता है।
23 और वह उन्हें पास बुलाकर, उन से दृष्टान्तों में कहने लगा; शैतान क्योंकर शैतान को निकाल सकता है?
24 और यदि किसी राज्य में फूट पड़े, तो वह राज्य क्योंकर स्थिर रह सकता है?
25 और यदि किसी घर में फूट पड़े, तो वह घर क्योंकर स्थिर रह सकेगा?
26 और यदि शैतान अपना ही विरोधी होकर अपने में फूट डाले, तो वह क्योंकर बना रह सकता है? उसका तो अन्त ही हो जाता है।
27 किन्तु कोई मनुष्य किसी बलवन्त के घर में घुसकर उसका माल लूट नहीं सकता, जब तक कि वह पहिले उस बलवन्त को न बान्ध ले; और तब उसके घर को लूट लेगा।
28 मैं तुम से सच कहता हूं, कि मनुष्यों की सन्तान के सब पाप और निन्दा जो वे करते हैं, क्षमा की जाएगी।
29 परन्तु जो कोई पवित्रात्मा के विरूद्ध निन्दा करे, वह कभी भी क्षमा न किया जाएगा: वरन वह अनन्त पाप का अपराधी ठहरता है।
30 क्योंकि वे यह कहते थे, कि उस में अशुद्ध आत्मा है॥
31 और उस की माता और उसके भाई आए, और बाहर खड़े होकर उसे बुलवा भेजा।
32 और भीड़ उसके आसपास बैठी थी, और उन्होंने उस से कहा; देख, तेरी माता और तेरे भाई बाहर तुझे ढूंढते हैं।
33 उस ने उन्हें उत्तर दिया, कि मेरी माता और मेरे भाई कौन हैं?
34 और उन पर जो उसके आस पास बैठे थे, दृष्टि करके कहा, देखो, मेरी माता और मेरे भाई यह हैं।
35 क्योंकि जो कोई परमेश्वर की इच्छा पर चले, वही मेरा भाई, और बहिन और माता है॥

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