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2 कुरिन्थियों

अध्याय : 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13

1 अब तीसरी बार तुम्हारे पास आता हूं: दो या तीन गवाहों के मुंह से हर एक बात ठहराई जाएगी।
2 जैसे जब दूसरी बार तुम्हारे साथ था, सो वैसे ही अब दूर रहते हुए उन लोगों से जिन्हों ने पहिले पाप किया, और और सब लोगों से अब पहिले से कहे देता हूं, कि यदि मैं फिर आऊंगा, तो नहीं छोडूंगा।
3 तुम तो इस का प्रमाण चाहते हो, कि मसीह मुझ में बोलता है, जो तुम्हारे लिये निर्बल नहीं; परन्तु तुम में सामर्थी है।
4 वह निर्बलता के कारण क्रूस पर चढ़ाया तो गया, तौभी परमेश्वर की सामर्थ से जीवित है, हम भी तो उस में निर्बल हैं; परन्तु परमेश्वर की सामर्थ से जो तुम्हारे लिये है, उसके साथ जीएंगे।
5 अपने आप को परखो, कि विश्वास में हो कि नहीं; अपने आप को जांचो, क्या तुम अपने विषय में यह नहीं जानते, कि यीशु मसीह तुम में है नहीं तो तुम निकम्मे निकले हो।
6 पर मेरी आशा है, कि तुम जान लोगे, कि हम निकम्मे नहीं।
7 और हम अपने परमेश्वर से प्रार्थना करते हैं, कि तुम कोई बुराई न करो; इसलिये नहीं, कि हम खरे देख सकें, पर इसलिये कि तुम भलाई करो, चाहे हम निकम्मे ही ठहरें।
8 क्योंकि हम सत्य के विरोध में कुछ नहीं कर सकते, पर सत्य के लिये कर सकते हैं।
9 जब हम निर्बल हैं, और तुम बलवन्त हो, तो हम आनन्दित होते हैं, और यह प्रार्थना भी करते हैं, कि तुम सिद्ध हो जाओ।
10 इस कारण मैं तुम्हारे पीठ पीछे ये बातें लिखता हूं, कि उपस्थित होकर मुझे उस अधिकार के अनुसार जिसे प्रभु ने बिगाड़ने के लिये नहीं पर बनाने के लिये मुझे दिया है, कड़ाई से कुछ करना न पड़े॥
11 निदान, हे भाइयो, आनन्दित रहो; सिद्ध बनते जाओ; ढाढ़स रखो; एक ही मन रखो; मेल से रहो, और प्रेम और शान्ति का दाता परमेश्वर तुम्हारे साथ होगा।
12 एक दूसरे को पवित्र चुम्बन से नमस्कार करो।
13 सब पवित्र लोग तुम्हें नमस्कार करते हैं।
14 प्रभु यीशु मसीह का अनुग्रह और परमेश्वर का प्रेम और पवित्र आत्मा की सहभागिता तुम सब के साथ होती रहे॥

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